होलिका दहन है बुराई का अंत करने का पर्व, होली की रोली खुशियों से भरेगी सभी का जीवन!
होली विशेष : होली की एक शाम पहले होलिका दहन बुराई का अंत करने का पर्व है, रंगों का त्योहार खुशियों से भरता है सभी का जीवन! आइये जानते हैं पर्व विशेष.... होलिका दहन विशेष होलिका दहन, होली त्यौहार का पहला दिन, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसके अगले दिन रंगों से खेलने की परंपरा है जिसे धुलेंडी, धुलंडी और धूलि आदि नामों से भी जाना जाता है। होली बुराई पर अच्छाई की विजय के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। होलिका दहन का शास्त्रोक्त नियम फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक माना जाता है, जिसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। पूर्णिमा के दिन होलिका-दहन किया जाता है। इसके लिए मुख्यतः दो नियम ध्यान में रखने चाहिए। 1. पहला, उस दिन “भद्रा” न हो। भद्रा का ही एक दूसरा नाम विष्टि करण भी है, जो कि 11 करणों में से एक है। एक करण तिथि के आधे भाग के बराबर होता है। 2. दूसरा, पूर्णिमा प्रदोषकाल-व्यापिनी होनी चाहिए। सरल शब्दों में कहें तो उस दिन सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि होनी चाहिए। होलिका दहन (जिसे छोटी होली भी कहते हैं) के अगले दिन पूर्ण हर्षोल्ल...